
नई दिल्ली। मालदीव में जारी संकट के बीच भारत ने चीन से कहा है कि वह अपने पड़ोसी देश में हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस कदम से दोनों देशों के बीच ‘सामरिक विश्वास’ को मजबूती मिलेगी। भले ही दोनों देशों के बीच पिछले साल डोकलाम को लेकर सामरिक तौर पर संकट का सामना करना पड़ा हो।
प्रभाव में कमी:
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘वो दिन चले गए जब भारत का मानना था कि दक्षिण एशिया उसके प्रभाव का मुख्य इलाका है। भारत इस क्षेत्र में एकमात्र ताकत होने का दावा नहीं कर सकता। हम चीन को नेपाल या मालदीव में मनमर्जी करने से नहीं रोक सकते, लेकिन हम अपनी संवेदनशीलता के बारे में उन्हें आगाह कर सकते हैं। अपनी वैधता की सीमा बता सकते हैं। अगर वे इसका उल्लंघन करते हैं, तो सामरिक विश्वास के उल्लंंघन की जिम्मेदारी बीजिंग की होगी।’
विदेशी दौरे:
भारत, नेपाल के प्रधानमंत्री खदगा प्रसाद (केपी) ओली के 6 अप्रैल से शुरू हो रहे तीन दिवसीय दौरे की मेजबानी के लिए तैयार है। वह अपने बाकी के पड़ोसी देशों पर सतर्क निगाह रखे हुए है। जहां तक मालदीव का सवाल है तो विदेश सचिव विजय गोखले ने ही फरवरी में बीजिंग दौरे पर चीन के सामने ये असामान्य प्रस्ताव रखा।
भारत के फैसले की सराहना:
मालदीव में राष्ट्रपति यामीन के आपातकाल लगाने के बाद दिल्ली ने अपने बयान में कहा था कि सभी देश इस मामले में सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं, बजाए कि वे कोई अपोजिट भूमिका निभाएं। मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप न करने के भारत के फैसले को यूरोपियन यूनियन और अमेरिका ने भी सराहा है। दोनों का मानना था कि अगले कदम पर फैसला भारत को ही लेना है, लेकिन दिल्ली ने सितंबर तक इंतजार करने का फैसला किया है। मालदीव में आने वाले सितंबर में चुनाव होंगे।