सनातन धर्म में नारी का स्थान हमेशा पूजनीय रहा है
महानगर संवाददाता
नारी और नारीत्व दोनों ही अपने आप में पूर्ण और सम्पूर्ण है, इन्हे किसी परिभाषा की जरुरत नहीं है।नारी एवं नारीत्व को किसी एक विशेष दिन की जरुरत नहीं है। भारतीय परिपेक्ष्य में अगर बात की जाए तो हमे इसकी महतत्ता का पता अपने आप ही चल जायेगा, जहा नारी के बिना घर परिवार एवं समाज की हम कल्पना भी नहीं कर सकते है।हमारे सनातन धर्म में तो सदैव से ही नारी का स्थान पूजनीय रहा है। यहाँ तो यह माना जाता है की जहा नारी की पूजा की जाती है वह भगवान् का निवास होता है। भारतीय इतिहास से यह पता चलता है की यहाँ नारी सदैव ही पूजनीय रही है।
नारीवाद ने कला क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है
नारीवाद की सकारात्मक शक्ति व्यक्तियों को सशक्त बनाने और समाज को बेहतरी के लिए बदलने की क्षमता में स्पष्ट है। लैंगिक समानता की वकालत करके, हाशिए पर मौजूद समुदायों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देकर, सामाजिक प्रगति और न्याय को बढ़ावा देकर, सहानुभूति और करुणा का पोषण करके और आलोचनात्मक चेतना विकसित करके, नारीवाद हमारे सामूहिक अनुभव को समृद्ध करता है और एक अधिक समावेशी, न्यायसंगत और दयालु दुनिया की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। नारीवाद को अपनाना न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि सभी के लिए एक उज्जवल और अधिक न्यायपूर्ण भविष्य का मार्ग भी है। नारीवाद ने कला क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, पारंपरिक मानदंडों को चुनौती दी है और हाशिए की आवाज़ों को एक मंच प्रदान किया है। कला जगत में नारीवाद क्यों महत्वपूर्ण है इसके कई कारण यहां दिए गए हैं:
प्रतिनिधित्व: ऐतिहासिक रूप से, महिला कलाकारों को मुख्यधारा के कला संस्थानों से कम प्रतिनिधित्व दिया गया है या पूरी तरह से बाहर रखा गया है। नारीवाद महिला कलाकारों के लिए समान अवसरों और मान्यता की वकालत करके इस असमानता को दूर करना चाहता है।
पितृसत्ता की आलोचना: नारीवादी कला उन पितृसत्तात्मक संरचनाओं की आलोचना करती है जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से कला की दुनिया को आकार दिया है। यह पुरुष-प्रधान आख्यानों को चुनौती देता है और विविध दृष्टिकोण से कला इतिहास के पुनर्मूल्यांकन को प्रोत्साहित करता है।
सक्रियता और सामाजिक परिवर्तन: कई नारीवादी कलाकार महिलाओं के अधिकार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और एलजीबीटी अधिकारों जैसे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए सक्रियता के रूप में अपने काम का उपयोग करते हैं। कला संवाद जगाने, जागरूकता बढ़ाने और बदलाव की वकालत करने का एक शक्तिशाली उपकरण बन जाती है।
महिला निकायों का पुनरुद्धार: ऐतिहासिक रूप से, कला में महिलाओं के शरीर का प्रतिनिधित्व अक्सर पुरुष दृष्टिकोण के माध्यम से वस्तुनिष्ठ या आदर्शीकृत किया गया है। नारी कलाकार एवं नारीवादी कलाकार अपने शरीर को ऐसे तरीकों से चित्रित करके अस्तित्व को पुनः प्राप्त करते हैं जो सामाजिक मानदंडों को चुनौती देता है और महिलाओं को सशक्त बनाता है।
सामुदायिक निर्माण: नारीवादी कला उन कलाकारों और दर्शकों के बीच समुदाय की भावना को बढ़ावा देती है जो समान मूल्यों और अनुभवों को साझा करते हैं। यह सहयोग, संवाद और पारस्परिक सशक्तिकरण के लिए एक सहायक स्थान प्रदान करता है। कुल मिलाकर, नारीवाद ने अपनी सीमाओं का विस्तार करके, अपने दृष्टिकोणों में विविधता लाकर और अधिक समावेशिता और सामाजिक न्याय की वकालत करके कला क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध किया है। भारत में महिला कलाकारों का एक समृद्ध इतिहास है जिन्होंने विभिन्न कला रूपों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां भारत की कुछ उल्लेखनीय महिला कलाकार हैं
भारत में महिला कलाकारों का एक समृद्ध इतिहास
अमृता शेर-गिल: अक्सर 20वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण भारतीय कलाकारों में से एक मानी जाने वाली अमृता शेर-गिल का काम पश्चिमी और भारतीय कलात्मक परंपराओं के मिश्रण के लिए मनाया जाता है। वह भारतीय ग्रामीण जीवन को दर्शाने वाले अपने ज्वलंत चित्रों और चित्रों के लिए जानी जाती हैं।
अर्पिता सिंह: अर्पिता सिंह एक समकालीन भारतीय कलाकार हैं जो अपनी आलंकारिक पेंटिंग के लिए जानी जाती हैं जो नारीत्व, परिवार और समाज के विषयों का पता लगाती हैं। उनके काम में अक्सर जीवंत रंग और जटिल विवरण शामिल होते हैं।
भारती खेर: भारती खेर एक प्रसिद्ध समकालीन कलाकार हैं जिनका काम पेंटिंग, मूर्तिकला और स्थापना सहित विभिन्न माध्यमों तक फैला हुआ है। वह अपनी पहचान, पौराणिक कथाओं और मानव शरीर की खोज के लिए जानी जाती हैं।
नलिनी मालानी: नलिनी मालानी एक अग्रणी भारतीय कलाकार हैं जो अपने मल्टीमीडिया इंस्टॉलेशन, पेंटिंग और वीडियो कला के लिए जानी जाती हैं। उनका काम अक्सर हिंसा, नारीवाद और वैश्वीकरण के विषयों को संबोधित करता है।
अंजू डोडिया: अंजू डोडिया एक समकालीन चित्रकार हैं जो अपनी आत्मनिरीक्षण और काव्यात्मक कलाकृतियों के लिए जानी जाती हैं जो अतियथार्थवाद और भारतीय लघु चित्रकला परंपराओं के तत्वों का मिश्रण हैं। वह अक्सर स्वार्थ, स्मृति और अस्तित्ववाद के विषयों की खोज करती है।
राजस्थान महिला कलाकार
सीमा कोहली: सीमा कोहली एक समकालीन कलाकार हैं जो अपनी जटिल और आध्यात्मिक रूप से प्रेरित कलाकृतियों के लिए जानी जाती हैं। उनकी पेंटिंग्स में अक्सर पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिकता और स्त्रीत्व के तत्व शामिल होते हैं, जो भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के साथ उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाते हैं।
कविता जयसवाल: कविता जयसवाल जयपुर की एक कलाकार हैं जो अपनी जीवंत और रंगीन पेंटिंग के लिए जानी जाती हैं जो ग्रामीण राजस्थान के दृश्यों को दर्शाती हैं। उनका काम ग्रामीण जीवन के सार को दर्शाता है, क्षेत्र के पारंपरिक रीति-रिवाजों, पोशाक और परिदृश्यों को प्रदर्शित करता है।
किरण सोनी गुप्ता: किरण सोनी गुप्ता एक बहुमुखी कलाकार हैं जो पेंटिंग, मूर्तिकला और स्थापना सहित अपने विविध कार्यों के लिए जानी जाती हैं। उनकी कलाकृतियाँ अक्सर प्रकृति, आध्यात्मिकता और मानवीय भावनाओं के विषयों का पता लगाती हैं, जो उनकी राजस्थानी जड़ों से उनके गहरे संबंध को दर्शाती हैं।
वीरबाला भावसार: वीरबाला भावसार की चर्चा आते ही हमारे मानस पटल पर जो सर्वप्रथम उभर आतें है, वह है - रेत के माध्यम से बनाये गए चित्रांकन। वे राजस्थान की एक ऐसे चित्रकार है जिन्होंने मात्र नदियों की रेत को ही अपनी कलाकृतियो का माध्यम बनाया। जो की उनकी कलाकृतियों का सम्पूर्ण रंग संसार रहा।
गंगा देवी: गंगा देवी राजस्थान की एक प्रसिद्ध लोक कलाकार थीं जो अपनी पारंपरिक मधुबनी पेंटिंग के लिए जानी जाती थीं। उनकी जटिल कलाकृतियों में हिंदू पौराणिक कथाओं, प्रकृति और रोजमर्रा की जिंदगी के दृश्यों को दर्शाया गया, जिससे उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली।
इनके अलावा भी और कई महिला कलाकार है जो सक्रिय तौर पर कार्यरत है। सभी का उल्लेख एक लेख में कर पाना संभव नहीं है। समाज में और कला क्षेत्र में नारी एवं नारीत्व की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। उनके नाम का सिर्फ एक दिन मनाना कितना ओचित्यपूर्ण है यह जानना भी जरुरी है। - डॉ. नमिता सोनी (सहायक आचर्य)
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